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घर-घर दुःशासन खड़े

By अपनी पत्रिका

July 24, 2023

चीरहरण को देख कर, दरबारी सब मौन ! प्रश्न करे अँधराज पर, विदुर बने वो कौन !! ★★★ कदम-कदम पर हैं खड़े, लपलप करे सियार ! जाये तो जाये कहाँ, हर बेटी लाचार !! ★★★ बची कहाँ है आजकल, लाज-धर्म की डोर ! पल-पल लुटती बेटियां, कैसा कलयुग घोर !! ★★★ राम राज के नाम पर, कैसे हुए सुधार ! घर-घर दुःशासन खड़े, रावण है हर द्वार !! ★★★ वक्त बदलता दे रहा, कैसे- कैसे घाव ! माली बाग़ उजाड़ते, मांझी खोये नाव !! ★★★ घर-घर में रावण हुए, चौराहे पर कंस ! बहू-बेटियां झेलती, नित शैतानी दंश !! ★★★

वही खड़ी है द्रौपदी, और बढ़ी है पीर ! दरबारी सब मूक है, कौन बचाये चीर !! ★★★ छुपकर बैठे भेड़िये, लगा रहे हैं दाँव ! बच पाए कैसे सखी, अब भेड़ों का गाँव !! ★★★ डॉ. सत्यवान सौरभ