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अशोक विहार। अग्रवाल वेलफेयर सोसाइटी चुनाव में अब दो दिन शेष है। एक तरफ गुलाब चुनाव चिन्ह के साथ अनिल गुप्ता की “समाज समर्पित टीम ” है तो दूसरी तरफ उगते सूरज चुनाव चिन्ह के साथ सद्भावना ग्रुप वाले राजेंद्र गर्ग का ग्रुप है। इन दोनों में किसका पलड़ा भारी है इसका आंकलन सोसाइटी की सियासत को समझने वाले सम्मानित और सामाजिक नेताओं के लिए भी आसान नहीं है। समाज के ज्यादातर लोग चुनाव में वोट डालने तो जरूर आएंगे लेकिन चुनाव प्रचार से दूर ही नजर आ रहे है। जिस भी पैनल से वोट मांगने आता है उसका सम्मान कर उन्हें प्रणाम कर रहे है लेकिन कार्यालयों में जाने से कतरा रहे है। वोट मांगना तो दूर चुनावी मीटिंग में भी नहीं आ रहे है कि कहीं किसी पैनल के पक्ष में होने का ठप्पा न लग जाये। ऐसे में चुनाव परिणाम का आकलन इस बात किया जा रहा है कि वोट बैंक वाले कौन-कौन लोग किसके पक्ष में है। मीडिया में इंटरव्यू देने से भी बच रहे है।
वैसे सोसाइटी का चुनाव समाज के कुछ ख़ास लोग है जिनका अपना वोट बना है , रिश्तेदारियों से बंधे है। ऐसे प्रमुख लोग चुनाव परिणामों की दशा और दिशा तय करते है। यही वजह है कि दोनों पैनल के प्रमुख लोगों ने अपने अपने उमीदवार तय करते समय सामाजिक समीकरणों और रिश्तों का ध्यान रखा है। यह भी चुनावी रणनीति का ही हिस्सा है की किस को किस पद पर प्रत्याशी बताएं कि वोट बैंक का गणित उनके पक्ष में आ जाये। इस मामले में अनिल गुप्ता फिर से चाणक्य साबित हुए है। चुनाव में अपने ही रिश्तेदार, परिवार और मित्र आमने सामने अलग अलग पद और पैनल से चुनाव लड़ रहे है। रिश्तेदारों की डोर ने चुनावी रण को रोचक बना दिया है। इसके साथ ही समाज के लोगों के के सामने यह समस्या खड़ी कर दी है की वे किसका समर्थन करें और किसे नाराज करें। कई लोगों ने तो रिश्तों की वजह से खुद को चुनाव लड़ने से रोक लिया। अब तक हर चुनाव जीतने वाले विजय गुप्ता केवल इस लिए चुनावी समर से दूर है क्योकि उनके दामाद मनु जिंदल अनिल गुप्ता ग्रुप से उपप्रधान प्रत्याशी है। जबकि विजय गुप्ता उनके उलट राजेंद्र गर्ग के पैनल के लिए वोट मांग रहे है। मनु जिंदल का अनिल गुप्ता घी वाले ग्रुप के सारथि दीपक जिंदल का पारिवारिक रिश्ता है।
इसी तरह अनिल गुप्ता घी वाले ग्रुप से उपप्रधान प्रत्याशी मोहिंदर बंसल अनिल गुप्ता पैनल से है ,लेकिन उनके सगे भतीजे राकेश बंसल राजेंद्र गर्ग पैनल से महासचिव प्रत्याशी है। चाचा भतीजा दोनों अलग अलग पैनल से है और अलग अलग पद पर चुनाव लड़ रहे है। राकेश बंसल दिल्ली की राजनीती में प्रमुख स्थान रखने वाले मांगे राम गर्ग परिवार के दामाद भी है। ऐसे में उनका और उनके रिश्तों का का लाभ राकेश गुप्ता को मिलना स्वाभाविक है।
इसी तरह अनिल गुप्ता पैनल से वरिष्ठ उपप्रधान राजेश सिंघल चुनाव लड़ रहे है। राजेश सिंघल सोसाइटी चुनाव में मुख्य चुनाव अधिकारी की भूमिका निभा रहे डॉ एच. सी गुप्ता के सगे भतीजे है। डॉ एच.सी. गुप्ता चुनाव अधिकारी होने के कारण अपने भतीजे के लिए भी वोट नहीं मांग पा रहे है। जबकि उनके सामने एक मजबूत नाम कैलाश चंद गुप्ता का है।
ऐसे ही आपसे रिश्तों के डोर से चुनाव लड़ और लड़वा रहे लोग बंधे हुए है। ऐसे में जीत हार का आंकलन इस बात पर ज्यादा है की कौन किसके लिहाज़ा , दबाव और सौदे कर पाटा है। रणनीति और अनिल गुप्ता का पलड़ा भारी है। अनिल गुप्ता का अपना वोट बैंक भी है और प्रत्याशी तय करते समय सभी समीकरणों को ध्यान में रखा है। इनके पक्ष में समाज के कई प्रमुख लोग खुलकर सामने आ रहे है।
सोसाइटी के चुनाव में करीब आधे मतदाता अशोक विहार के ही निवासी है। बाकी बाहर से है ,इन बाहरी वोटों को साधने में अनिल गुप्ता घी वाले का ग्रुप ज्यादा सफल नजर आ रहा है। प्रधान पद प्रत्याशी अनिल गुप्ता मजबूत तो माने जा रहे है लेकिन कुछ लोगों का मानना है की सोसाइटी में अनिल गुप्ता के विरुद्ध अंडर करंट भी नजर आ रहा है। लिहाज़ा कई लोगों को सोसाइटी में मिली जुली सरकार नजर आ रही है लेकिन बहुमत और अनिल गुप्ता का ही बताया जा रहा है।
बहरहाल चुनाव प्रचार अब अपने अंतिम समय में है सबकी नजरें आगामी 4 जून को होने वाले चुनाव पर है। उम्मीद है की देर रात तक चुनाव परिणाम आ जायेंगे और साफ़ हो जाएगा कि गुलाब खिलता है या फिर सूरज उगता है।