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सिसोदिया के जेल जाने के साथ ही खत्म हुई केजरीवाल के लिए चुनौती, उनकी सत्ता के रास्ते में अब कोई नहीं है रोड़ा

By अपनी पत्रिका

March 07, 2023

दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी चाहे लाख बीजेपी पर साजिश करने का आरोप लगा लें पर क्या वह सचमुछ दुखी हैं। अगर उनको मनीष की परवाह होती और वह उनको पाक साफ मानते तो क्या इतनी आसानी से उनका इस्तीफा मंजूर कर लेते। क्या अरविंद इस बात को लेकर खुश हैं कि अब उनके सत्ता को कोई भी चुनौती नहीं दे सकता है। मनीष सिसोदिया वह आखिरी नेता थे जो मुख्यमंत्री की कुर्सी केजरीवाल से छीन सकते थे पर अब वह भी दागदार नेता है। आम आदमी पार्टी में अब सिर्फ एक कट्टर ईमानदारी नेता बचा है और वह है अरविंद केजरीवाल।

नई दिल्ली, 7 मार्च। मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी से भले ही बीजेपी जमकर खुशी मनाएं पर इस सारे मामले एक और व्यक्ति काफी खुश हैं भले ही वह अपनी खुशी जताएं न। वह अरविंद केजरीवाल। किसी दार्शनिक ने राजनीति को लेकर बेहद सटीक बात कही है कि अच्छा आदमी, अच्छा होने की वजह से कुर्सी पर बिठाया गया है। कुर्सी छोड़ने से नीचा नहीं हो जाने वाला है। अच्छा आदमी कुर्सी को छोड़ने की हिम्मत रखता है और जो लोग कुर्सी को छोड़ने की हिम्मत रखते हैं किसी भी चीज को चुपचाप छोड़ सकते हैं बिना किसी जबर्दस्ती किए उनके साथ वो मुल्क की जीवनधारा का अवरोध कभी नहीं बनते बल्कि राजनीति को एक नई दिशा की तरफ ले जाते हैं। यह बाते मनीष सिसोदिया पर सच तो बैठती पर तब जब उनकी अपनी ही पार्टी में उनके खिलाफ साजिश न रचती।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आधुनिक राजनीति में कमोबेश ऐसा नेता माना जाता है जो बेहद संयत व संजीदा होकर आम लोगों से खुद को कनेक्ट करने की कला में माहिर है। लेकिन फिलहाल केजरीवाल के लिए ऐसी चुनौती सामने आ गई है जिससे निपटने और फिर वैसा ही औरा कायम करने का नुस्खा किसी और के पास है भी नहीं। उनके कथित सबसे विश्वस्त सहयोगी मनीष सिसोदिया ने सीबीआई की गिरफ्त में आने के बाद उप मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। और तो और अरविंद ने बिना न नुकर के इस्तीफा मंजूर भी कर लिया। यह वही पार्टी है और वही सीएम है जिन्नोहंने अपने एक मंत्री सत्येन्द्र जैन से 9 महीने तक इस्तीफा नहीं मांगा था। वहीं पार्टी और उसका सीएम अपने कथित तौर पर दाहिने हाथ के इस्तीफे को बिना देर किए मंजूर कर लेता है वह भी तब जब सिसोदिया रिमांड पर ही होते हैं। जाहिर है कि उनका ये फैसला केजरीवाल की मर्जी से ही हुआ होगा। लेकिन अब सवाल ये है कि केजरीवाल दूसरा मनीष सिसौदिया कहां से और कैसे तलाशेंगे?

इसलिये कि जिन महत्वपूर्ण विभागों को सीएम केजरीवाल ने कभी अपने पास नहीं रखा उन सारे 18 विभागों का जिम्मा सिसोदिया को सौंप रखा था। इनमें दो सबसे अहम विभाग थे- वित्त और शिक्षा। यानी, उन्होंने अपने 23 साल पुराने साथी पर सौ फीसदी भरोसा किया हुआ था जो राजनीति में अक्सर बहुत कम ही देखने को मिलता है।

वैसे कहने वाले कह रहे हैं कि सियासी भाषा में कहें तो सिसोदिया की गिरफ्तारी केजरीवाल की एक बांह को तोड़ने जैसी है। इसलिए कि आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर केजरीवाल अपनी आम आदमी पार्टी का विस्तार करने की कोशिश में जोरशोर से जुटे हुए हैं। इस महीने के पहले दो हफ्तों में ही उन चार राज्यों में उनके दौरे प्रस्तावित हैं जहां इसी साल विधानसभा के चुनाव हैं। इनमें कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान अहम हैं। जहां केजरीवाल अपनी पार्टी की सियासी जमीन मजबूत करने के साथ ही तीसरी बड़ी ताकत बनकर उभरने के लिये पूरी तैयारी से जुटे हुए हैं लेकिन सिसोदिया की गिरफ्तारी ने अब उनके साथ ही पार्टी के लिए भी संकट खड़ा कर दिया है। वो इसलिये कि बीते लोकसभा चुनाव हों या फिर पिछले साल हुए पंजाब विधानसभा के चुनाव हर बार केजरीवाल को दिल्ली से बाहर जाने-रहने में कभी कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई। इसलिए कि वे बेफिक्र रहते थे कि सरकार का सारा कामकाज सिसोदिया बखूबी संभाल लेंगे।

वैसे सच ये भी है कि उन्होंने इस जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से संभाला भी और केजरीवाल के बढ़कर संभाला। यही कारण है कि पिछले दिल्ली विधानसबा चुनाव के दौरान सिसोदिया के दिल्ली के सीएम बनने की खबरें चर्चा में थी। यही बात केजरीवाल को नागवार गुजरी क्योंकि चाहे आप पार्टी के अध्यक्ष का पद हो या दिल्ली के सीएम का पद केजरीवाल अपने अलावा किसी को वहीं देख ही नहीं सकते हैं। यहां तक कि उनके कथित भावी दामाद राघव चड्ढा को भी पंजाब इसीलिए भेजा ताकि वह दिल्ली को लेकर कोई सपना न देंखे। ऐसे में अपनी कुर्सी का हकदार सिसोदिया का बनता देख उनपर क्या बीती होगी सोचा जा सकता है।

वैसे सियासी विश्लेषक कहते हैं कि सिसोदिया के मामले में सीबीआई के आरोपों में कितनी सच्चाई है इसका फैसला तो अदालत ही करेगी। उनकी गिरफ्तारी पर सियासी पारा गरम होना ही था सो वह हो भी रहा है। लेकिन देखना ये होगा कि केजरीवाल अपने सबसे करीबी सहयोगी की इस गिरफ्तारी को अपने पक्ष में कितना भुना पाते हैं और अगले लोकसभा चुनाव तक इस मोमेंटम को किस हद तक बरकरार रख पाते हैं। हालांकि इतनी ताबड़तोड़ दिए गए सिसोदिया के इस्तीफे पर आप ने दलील यही दी है कि दिल्लीवासियों का कोई काम न रुके, इसलिये उन्होंने इस्तीफा दिया है।  लेकिन बीजेपी ने इसे भी मुद्दा बनाते हुए कहा है कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली इसलिए मजबूरी में ऐसा करना पड़ा। अधिकांश विश्लेषक मानते हैं कि सिसोदिया की गिरफ्तारी बीजेपी के लिए एक बड़ा सियासी औजार भी साबित हो सकती है। वो इसलिए कि पंजाब की सत्ता हासिल करने के बाद बीजेपी किसी भी सूरत में नहीं चाहती कि दिल्ली से बाहर अन्य राज्यों में आम आदमी पार्टी का विस्तार हो और वह एक बड़ी ताकत बनकर उभरे।

वैसे सिसोदिया के जेल जाने से अरविंद का परोक्ष रूप से फायदा ही है। वह जिस तरह की राजनीति करते हैं और जिस तरह अपने  प्रतिद्वंदियो को रास्ते से हटाते हैं उसका ही एक नमूना सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया भी हैं। अब आम आदमी पार्टी में कट्टर ईमानदार बस एक बचा है और वह हैं अरविंद केजरीवाल। अब आप लोग ही सोचिए और फैसला कीजिए सिसोदिया के रास्ते से हटने से क्या सिर्फ बीजेपी का फायदा होगा। सोचिए इससे किसका कितना फायदा होगा।