नई दिल्ली । सबसे तार्किक निष्कर्ष यह है कि भारत की आबादी बढ़ने की गति मद्धम पड़ी है। आबादी की वृद्धि दर न केवल स्थिर हुई है बल्कि गिरी है। समस्या यह है कि हम संख्या को आसानी से जोड़कर कुछ भी निष्कर्ष नहीं निकाल सकते और न ही इसे हम प्रॉजेक्ट कर सकते हैं। भारत की जनगणना में धार्मिक डेटा अक्सर बाद में सार्वजनिक होते हैं। जाहिर है ये डेटा हर तरह के डर और पक्षपातपूर्ण अकटलबाजी में ईंधन की तरह काम करते हैं। धार्मिक डेटा गैर हिन्दुओं के बारे में भ्रामक तथ्य बनकर आते हैं। जब ये डेटा सार्वजनिक होते हैं तो अनिवार्य निष्कर्ष भ्रामक अटकलबाजी के रूप में सामने आता है। लेकिन फिर भी यह अपने आप में खतरनाक होता है। 2001 की जनगणना के आधार पर कहा जा रहा है कि 220 सालों में भारत के मुसलमान हिन्दू आबादी के बराबर हो जाएंगे। 1991 की जनगणना में मुसलमानों की आबादी 106,700,000 थी। वहीं हिन्दुओं की आबादी 690,100,000 थी। 10 साल बाद मुसलमानों की आबादी बढ़कर 138,200,000 और हिन्दुओं की जनसंख्या बढ़कर 82 करोड़ 76 लाख हो गई। मतलब इन 10 सालों में मुसलमानों की आबादी में 29.5 फीसदी और हिन्दुओं की आबादी में 19.9 पर्सेंट की वृद्धि हुई। इस एक दशक में सालाना मुसलमानों की वृद्धि दर 2.62 पर्सेंट रही और हिन्दुओं की 1.83 पर्सेंट। निश्चित रूप से इन 10 सालों में मुस्लिमों की आबादी हिन्दुओं के मुकाबले तेजी से बढ़ी। इसके कारणों की तहकीकात होनी चाहिए लेकिन यह अलग मामला है। मोटे तौर पर हम इस विश्लेषण को बदल नहीं सकते। बड़ी खूबसूरती से शुरुआती अरिथमेटिक के आधार पर दोनों समुदायों की वृद्धि दरें दिखाई गई हैं। और इसका निष्कर्ष यह निकाला गया है कि 220 सालों में मुस्लिमों की आबादी हिन्दुओं के लगभग बराबर हो जाएगी। मतलब 2233 में मुस्लिमों की आबादी हिन्दुओं के बराबर हो जाएगी। इस संख्या को कबूल करने के लिए हमें आगे निकलना होगा। क्या 220 साल बाद ऐसा होगा का डर दिखाकर हमारे स्थानीय नेता भड़काने की कोशिश कर रहे हैं? जैसा कि 500 साल पुरानी बाबरी मस्जिद को लेकर उकसाने की कोशिश की गई थी।यदि वास्तव में हम 90 के दशक की आबादी वृद्धि दर कायम रखते हैं तो सोचिए 2233 में क्या होगा? इस हिसाब से देश में 56 अरब हिन्दू और 56 अरब मुसलमान हो जाएंगे। मतलब 2233 में दुनिया की कुल आबादी के 16 गुना आबादी भारत में होगी। यदि इससे भी आप चकित नहीं हो रहे हैं तो फिर ऐसे सोचिए- अभी जिस जगह पर आप शांति से इस खबर को पढ़ रहे हैं वहां 2233 में 100 भारतीय होंगे। इसमें 50 हिन्दू और 50 मुस्लिम होंगे। मतलब अभी एक भारतीय की जगह 100 से ज्यादा भारतीय होंगे। यहां हम ईसाई, सिख, जैन, पारसी और बौध की तो बात ही नहीं कर रहे। देश की आबादी में ये समुदाय भी आते हैं। यदि इन्हीं कसौटी पर हम ईसाई आबादी को कसते हैं तो और आतंकित करने वाली स्थिति सामने आएगी। इसका नतीजा और हास्यास्पद है। 1991 में ईसाई आबादी 19 मिलियन थी जो 10 साल बाद 2001 में 24 मिलियन हो गई। मतलब इन 10 सालों में सालाना वृद्धि दर 2.36 पर्सेंट रही। इस फीगर के मुताबिक 670 साल बाद ईसाइयों की आबादी हिन्दुओं के बराबर हो जाएगी। मतलब तब देश में ईसाई 195 ट्रिलियन और 195 ट्रिलियन हिन्दू हो जाएंगे। जी, हां ट्रिलियन! अभी की दुनिया की कुल आबादी के 60 हजार गुना आबादी इस देश में होगी। तब एक भारतीय की जगह 4 लाख भारतीय होंगे। इस तरह के बेतुके तर्क पर लोग भरोसा करने लगते हैं और आंख मूंदकर इसे सह लेते हैं। स्थानीय नेता इन बेतुके तर्कों के सहारे पब्लिक के बीच भ्रम पैदा करते हैं। सबसे बेतुका तो यह है कि 220 साल और 670 साल बाद का डर लोगों के बीच पैदा किया जाता है। जाहिर है आज की वृद्धि दर में इतने लंबे वक्त बाद कोई भी तब्दीली आ सकती है।
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