Thursday, April 25, 2024
Homeअन्यहुड्डा के तव्वजों ने बढ़ाई तंवर की बेचैनी

हुड्डा के तव्वजों ने बढ़ाई तंवर की बेचैनी

 लोकसभा चुनाव उपरांत निरंतर हिचकोले खा रही कांग्रेस ने अपनी राजनीतिक जमीन को बचाने के लिए किसानों के कंधों का सहारा लिया है। वर्तमान में किसान कुदरत की मार, सरकार की अनदेखी इत्यादि से जूझ रहे है, जिसका राजनीतिक लाभ उठाने के लिए कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी ने खुद झंडा उठाया है। कांग्रेस सुप्रीमों ने झज्जर, भिवानी, रेवाड़ी व करनाल के किसानों से उनके खेत खलिहानों में पहुंचकर उनकी समस्याएं सुनी और उनके दर्द को समझा और उन्हें सान्तवना दी कि कांग्रेस हमेशा उनके साथ रही है और भविष्य में भी रहेगी। सोनिया ने किसानों के फसली नुकसान पर सान्तवना का मरहम लगाकर सहानुभूति बटोरने का प्रयास किया है, वहीं कांग्रेस में भी जान डालने की कोशिश करते हुए कांग्रेसी दिग्गजों को संकेत दिया है कि लोगों के बीच जाए, ताकि उन पर खोया हुआ विश्वास पुन: बनाया जा सके, जिसकी जनता को फिलहाल जरूरत है। प्रदेश के हिंदी इलाकों में सोनिया गांधी ने किसानों को एक बहुत बड़े प्र्रभावी जाट वोट बैंक में दस्तक दी है, जहां से किसान भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर मोदी सरकार से खफा है। ओलावृष्टि से प्र्रभावित किसान के आंसू पोंछने से कांग्रेस उन्हें अपने साथ जोडऩा चाहती है। सान्तवना की राजनीति कांग्रेस की खिसकती राजनीतिक जमीन को कितनी मजबूती देगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, मगर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को तव्वजों से मौजूदा कांग्रेस तंवर की बेचैनी बढ़ गई, जो पहले ही अपने नेतृत्व में संभावित बदलाव को लेकर परेशान है। कांग्रेस सुप्रीमों के इस दौरे से किसान कितने लांभावित होंगे, यह तो भविष्य के गर्भ में है,मगर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के समर्थकों के चेहरे जरूर खिल उठे है।  प्रदेश में 15 कांग्रेसी विधायकों में से 14 को हुड्डा समर्थक माना जाता है, जबकि 80 प्रतिशत से ज्यादा कांग्रेसी दिग्गज हुड्डा के साथ देखे जा सकते है, मगर मौजूदा पार्टी प्रधान अशोक तंवर राहुल गांधी के करीबी होने की वजह से प्रदेश कांग्रेस को हिचकोले में रखे हुए है। सोनिया की हरियाणा यात्रा से किसानों को फायदा मिलेगा या नहीं, यह तो एक प्रश्र बना हुआ है, मगर हुड्डा के राजनीतिक कद में जरूर इजाफा हुआ है, ऐसी राजनीतिक पंडितों की सोच है। प्रदेश में चर्चा चल पड़ी है कि किसानों के बाद राजनीतिक ओलावृष्टि की चपेट में मौजूदा पार्टी नेतृत्व आ सकता है।

 

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments