Friday, April 26, 2024
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भूकंप का खतरा दिल्ली पर कितना, क्या तुर्किए की तरह दहल सकती है दिल्ली?

तुर्किए और सीरिया भूकंप के बाद तहस नहस हो गया है। तुर्किए में तो 15 हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं। ऐसे में भारत की राजधानी दिल्ली को लेकर भूकंप वैज्ञानिक चिंतित हैं क्योंकि दिल्ली की स्थिति इसे भूकंप के लिहाज से संवेदनशील बनाती है और शहर को खुद को तैयार रखना होगा। लेकिन एक सच यह भी है,पिछले 200 सालों से अधिक समय में दिल्ली को किसी बड़े भूकंप ने दहलाया नहीं है। क्या दिल्ली में कभी भी तुर्किए जैसा भूकंप आ सकता है। इसी की पड़ताल करती रिपोर्ट-

भूकंप के झटके सहने के लिए देश का कौन-सा इलाका सुरक्षित है या फिर कहां भूकंप से सबसे ज्यादा क्षति हो सकती है, ऐसे कई सवाल आपके मन में आते होंगे। देश में इस साल भूकंप के झटके कई बार महसूस किए गए। दिल्ली एनसीआर में पिछले दो महीनों में करीब छह बार भूकंप के झटके महसूस किए गए। हालांकि भूकंप की तीव्रता बहुत तेज नहीं थी लेकिन कम अंतराल में भूकंप का बार-बार आना खतरनाक भी हो सकता है।

भारत में भूकंप की संवेदनशीलता को देखते हुए इसे चार जोन में बांटा गया है, ये जोन हैं: सिस्मिक जोन 5, सिस्मिक जोन 4, सिस्मिक जोन 3 और सिस्मिक जोन 2।  भूकंप के लिहाज से कई इलाके संवेदनशील इलाकों में आते हैं, इसमें सबसे ज्यादा खतरनाक सिस्मिक जोन 5 है, जहां आठ से नौ तीव्रता वाले भूकंप के आने की संभावना रहती है। इसके बाद सिस्मिक जोन 4 भी खतरनाक श्रेणी में आता है, इसमें भूकंप की तीव्रता 7.9-आठ रहती है। इसमें दिल्ली, एनसीआर के इलाके, जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के इलाके, यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल का उत्तरी इलाका, गुजरात का कुछ हिस्सा और पश्चिम तट से सटा महाराष्ट्र और राजस्थान का इलाका आता है। तो दिल्ली भी सिस्मिक जोन 4 में आती है जो खतरनाक है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सिस्मिक जोन-4 में आने वाली राजधानी दिल्ली भूकंप के बड़े झटके से खासा प्रभावित हो सकती है। अगर यहां सात की तीव्रता वाला भूकंप आया तो दिल्ली की कई सारी इमारतें और घर रेत की तरह बिखर जाएंगे। इन इमारतों में निर्माण सामग्री ऐसी है, जो भूकंप के झटकों का सामना करने में पूरी तरह से सक्षम नहीं है। दिल्ली में मकान बनाने की निर्माण सामग्री ही आफत की सबसे बड़ी वजह है।

अब ये भी जान लें कि दिल्ली भूकंप के लिए कितनी तैयार है। दिल्ली में पिछले दो- तीन महीनों में भूकंप के कई झटके महसूस किए गए हैं। हालांकि ये सभी झटके कम तीव्रता वाले थे लेकिन वैज्ञानिकों की ओर से तैयार की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली-एनसीआर की हर ऊंची इमारतें असुरक्षित नहीं है वल्नेबरिलिटी काउंसिल ऑफ इंडिया ने यह रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट को बिल्डिंग मटेरियल एंड टेक्नोलॉजी प्रमोशन काउंसिल ने प्रकाशित किया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह कहना गलत है कि दिल्ली की हर ऊंची इमारत भूकंप के कम तीव्रता के झटकों में दरक जाएगी। हालांकि, अपनी रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने चेताया भी है कि इन इमारतों का गलत तरीके से निर्माण इन्हें रेत में भी धंसा सकता है। दिल्ली की 70-80 फीसदी इमारतें भूकंप का औसत से बड़ा झटका झेलने के लिहाज से डिजाइन ही नहीं की गई हैं। पिछले कई दशकों के दौरान यमुना नदी के पूर्वी और पश्चिमी तट पर बढ़ती गईं इमारतें पर बहुत ज्यादा चिंता की बात है क्योंकि अधिकांश के बनने के पहले मिट्टी की पकड़ की जांच नहीं हुई है।

दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र की एक बड़ी समस्या आबादी का घनत्व भी है। डेढ़ करोड़ से ज्यादा आबादी वाले दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में लाखों इमारतें दशकों पुरानी हो चुकी हैं और कई मोहल्ले एक दूसरे से सटे हुए बने हैं। केवल बड़ी इमारतें ही नहीं, यदि छोटी इमारतें भी दिल्ली जिस सिस्मिक जोन में आता है, उस हिसाब से नहीं बनी तो तेज झटकों में उसे डेमेज का खतरा बना रहेगा।दिल्ली से थोड़ी दूर स्थित पानीपत इलाके के पास भूगर्भ में फॉल्ट लाइन मौजूद हैं, जिसके चलते भविष्य में किसी बड़ी तीव्रता वाले भूकंप की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। दिल्ली-एनसीआर में जमीन के नीचे मुख्यतया पांच लाइन दिल्ली-मुरादाबाद, दिल्ली-मथुरा, महेंद्रगढ़-देहरादून, दिल्ली सरगौधा रिज और दिल्ली-हरिद्वार रिज मौजूद है।

हिमालय भूकंपीय बेल्ट, भारतीय तट यूरेशियन प्लेट से अभिसरण क्षेत्र में स्थित है। हिमालयी क्षेत्र में भूकंप मुख्यत: मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) और हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट (HFT) से बीच ही आते हैं। इन भूकंपों का कारण द्विध्रुवीय सतह पर प्लेटों का आपस में खिसकना है। दिल्ली-एनसीआर, उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व हिमालय बेल्ट जो भूकंपीय संभावित क्षेत्र पांच और चार से बहुत दूर स्थित नहीं है।

दिल्ली के साथ समस्या यह है कि यह गंगा के मैदान में है और जलोढ़ पर बनी है। जैसे ही ऊर्जा नरम जलोढ़ से होकर गुजरती है, यह प्रवर्धित हो जाती है। भुज भूकंप के साथ, अहमदाबाद में कुछ दूरी पर इमारतें ढह गईं क्योंकि यह साबरमती बेसिन में स्थित थी। यदि ऊर्जा दिल्ली की ओर गुजरती है, तो उच्च प्रवर्धन हो सकता है और क्षति हमारी अपेक्षा से अधिक हो सकती है।

हालांकि वैज्ञानिक यह भी दावा करते हैं कि दिल्ली में एक बड़ा भूकंप  उत्पन्न नहीं हो सकता है क्योंकि यहां जो भूकंप के झटके लगते हैं वह हिमालय में उत्पन्न होने वाले भूकंपों के प्रभाव के लिए प्रवण है। उत्तरकाशी के पास 1803 में लगभग 7.6 की तीव्रता वाला भूकंप दिल्ली को प्रभावित करने वाला आखिरी भूकंप है। तब कुतुब मीनार आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गई थी। यहां तक कि 1999 में उत्तराखंड के चमोली में लगभग 6.1 के मध्यम भूकंप के साथ, यमुना के करीब कुछ घरों में क्षति की सूचना मिली थी। यह इस बात का प्रमाण है कि अगर घर जलोढ़ पर स्थित हैं तो एक सामान्य भूकंप भी दिल्ली को प्रभावित कर सकता है। हिमालय 8 से अधिक तीव्रता के भूकंप उत्पन्न करने में सक्षम है। तो तुर्किए से सीख लेते हुए दिल्ली को सावधान होना होगा पर पहले से खचाखचा बस चुकी दिल्ली के लिए फिलहाल दुआ ही मांगना लाजमी होगा कि यहां कभी भी तुर्किए की तरह भूकंप न आए वरना……

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