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कांग्रेस में कोई ‘असली’ नेता नहीं: संदीप दीक्षित

By अपनी पत्रिका

February 13, 2015

नई दिल्ली।  दिल्ली में हार के बाद कांग्रेस नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर थमता नहीं दिख रहा है। इस बार दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र और पूर्व पार्टी सांसद संदीप दीक्षित ने पार्टी नेतृत्व पर ही सवाल खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि पार्टी के पास ‘असली’ नेता नहीं हैं। संदीप ने मौजूदा समय में कांग्रेस पार्टी को चलाने के तरीके पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि पार्टी में एलीटिस्ट कल्चर (संभ्रांतवादी संस्कृति) से दंभ पैदा हो गया है।  पूर्वी दिल्ली से पूर्व सांसद ने कांग्रेस को अगाह किया कि कहीं वह धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर बीजेपी या आर्थिक मुद्दे पर आम आदमी पार्टी की नकल ना हो जाए। पार्टी में नए लोगों को लाने की तरफदारी करते हुए संदीप ने कहा, ‘पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में आधे की कोई पूछ नहीं है। इसी तरह एनएसयूआई (कांग्रेस का स्टूडेंट विंग) और यूथ कांग्रेस (कांग्रेस का यूथ विंग) में 70 फीसदी लोग अवांछित हैं।’ उन्होंने आगे कहा, ‘कांग्रेस की संस्कृति संभ्रांतवादी हो गई है, जिससे अहंकार बढ़ रहा है। इस हालत में हमारे कैडर बहुत असहज महसूस कर रहे हैं।’ इंटरव्यू के दौरान संदीप दीक्षित ने राहुल गांधी का नाम तो नहीं लिया लेकिन इशारों-इशारों में वह उन पर भी निशाना साधने से नहीं चूके। संदीप ने कहा कि पार्टी इलेक्शन से ना तो लोकतंत्र शुरू होता है और ना ही खत्म। उन्होंने कहा, ‘इसकी शुरुआत विचारों से होती है जो नेताओं को आगे बढ़ने की इजाजत देता है। इसका मतलब काम करने की स्वतंत्रता से है।’ दो बार सांसद रह चुके 50 वर्षीय संदीप दीक्षित ने कहा कि कांग्रेस को अपने सर्वोत्तम नेताओं, विचारों और पार्टी के मुद्दों की बजाय जनता के मुद्दों का चयन करना होगा। उन्होंने कहा कि जो सबसे महत्वपूर्ण है वह यह कि कांग्रेस में नए लोग लाए जाएं जो चुनावों के जरिए नहीं आते बल्कि उनको चिह्नित किया जाता है। उनके इस बयान की इस मायने में खास अहमियत है क्योंकि पार्टी के अंदर चुनाव इसके उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मनपसंद परियोजना भर बनकर रह गया है। गौरतलब है कि राहुल ने यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई के चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं। संदीप दीक्षित ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि हमें नरेंद्र मोदी को लेकर चिंता करनी चाहिए। हमारी चिंता हम खुद ही हैं। हमें कोई रास्ता ही अख्तियार नहीं किया बल्कि हम अपनी राह भूल गए। हम भारतीय क्रिकेट टीम की तरह विरोधियों से यह अपेक्षा नहीं रखेंगे कि वह कमजोर पड़ जाए। हीरो वह है जो अच्छी टीम को मात देता है।’ उन्होंने पार्टी के प्रचार को तरीकों पर भी सवाल खड़ा किया और कहा कि जनता के साथ संवाद में कहीं ना कहीं कुछ भयानक गलती तो हो रही है। यही हमारी असली हार है। उन्होंने कहा कि पार्टी उद्योग जगत को अनुशासित रखना और उन पर नियंत्रण कायम करना ही भूल गई जिससे पिछले लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा, ‘हमें पूंजी को अनुशासित और नियंत्रित रखना चाहिए था, मनमोहन सिंह यही भूल गए थे। हम यह नहीं कर रहे कि उन्होंने ऐसा जानबूझ कर किया था…. समाजवाद की पराकाष्ठा पर भी भले ही अर्थशास्त्री हमारे विरुद्ध थे लेकिन लोग हमारे खिलाफ नहीं थे।’ उन्होंने कहा, ‘नेहरू और इंदिरा गांधी का वक्त कांग्रेस के लिए सबसे गौरवशाली था।’ इसके अलावा उन्होंने कहा कि कांग्रेस को यह कहकर बहकाया गया कि गुड गवर्नेंस ही जीत का एकमात्र मंत्र है लेकिन ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा, ‘जब आपके पास गरीबी हटाओ, न्याय और समानता तथा समावेशीकरण जैसे विचार हों तो गुड गवर्नेंस और सबसिडी कोई चीज नहीं होती।’ संदीप दीक्षित का मानना है कि राहुल गांधी को मुंबई लोकल ट्रेन में यात्रा जैसे कार्यक्रम जारी रखने चाहिए थे। उन्होंने कहा, ‘जैसे ही आपने यह करना छोड़ दिया लोगों ने समझा कि यह आपकी लाइन नहीं है… लोगों से दोस्ती करना, उनके साथ घुलना-मिलना आपकी असली पसंद नहीं है।’ उन्होंने कहा कि ज्यादातर कांग्रेसियों का झुकाव दक्षिणपंथ की ओर रहा। इसके लिए उन्होंने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के इस बयान का हवाला दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि देश जिन चुनौतियों से जूझ रहा है उनमें वामपंथी उग्रवाद सबसे बड़ी है। स्वयं सहायता समूह के साथ काम करने वाले संदीप दीक्षित ने कहा कि हकीकत यह है कि नक्सलवाद अन्याय के कारण पैदा हुआ है ना कि सिर्फ विकास के अभाव में। उनका कहना है कि जिन राज्यों में वाम उग्रवाद बढ़ा है वहां सबसे शोषणकारी व्यवस्था है जहां पुलिस और फोरेस्ट ऑफिसर राजाओं की तरह रहते हैं। उन्होंने कहा, ‘इसलिए इसकी पहचान गलत तरीके से हुई है।’