Thursday, April 25, 2024
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आरोपी महिला का भी वर्जिनिटी टेस्ट उसकी निजता का उल्लंघन, दिल्ली हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

दिल्ली हाई कोर्ट ने महिलाओं के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए  एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने वर्जिनिमाना है कि टी टेस्ट (Virginity Test) महिला की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक अखंडता का उल्लंघन करता है। इस तर्क के साथ कोर्ट ने केरल में 1992 के सिस्टर अभया हत्याकांड की दोषी सिस्टर सेफी की याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें उन्होंने पुलिस द्वारा उनका वर्जिनिटी टेस्ट करवाने के विरोध में याचिका दायर की थी।

हाई कोर्ट ने कहा कि किसी भी महिला का वर्जिनिटी टेस्ट नहीं होना चाहिए। भले ही महिला एक हत्या के मामले में आरोपी ही क्यों न हो। कोर्ट ने इसे सेक्सिस्ट प्रैक्टिस करार दिया। एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि वर्जिनिटी टेस्ट न तो आधुनिक हैं और न ही वैज्ञानिक, बल्कि वे पुरातन और तर्कहीन हैं। आधुनिक विज्ञान और चिकित्सा कानून महिलाओं पर इस तरह के परीक्षण के संचालन को अस्वीकार करते हैं।” पीठ ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत, कैदी सहित हर व्यक्ति को गरिमा के अधिकार की गारंटी दी गई है, चाहे वह दोषी हो, विचाराधीन हो या हिरासत में हो।

आपको बता दें कि मार्च 1992 में सिस्टर अभया को केरल के कोट्टायम में सेंट पायस एक्स कॉन्वेंट में पानी से भरे एक कुएं में मृत पाया गया था। शुरुआती पुलिस जांच में पाया गया कि मनोवैज्ञानिक स्थिति ठीक न होने के चलते मृतका ने आत्महत्या कर ली। वहीं स्थानीय समुदाय के दबाव के चलते जांच को 1993 में सीबीआई को सौंप दिया गया। लंबी प्रक्रिया के बाद 2008 में सीबीआई की नई टीम ने कॉन्वेंट से दो फादर और सिस्टर सेफी को गिरफ्तार किया और उन पर सिस्टर अभया की हत्या का आरोप लगाया। इसके बाद, साल 2020 में फादर थॉमस कोट्टूर और सिस्टर सेफी को हत्या का दोषी पाया गया और उम्रकैद की सजा दी गई।

इस बीच 2009 में सिस्टर सेफी ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और एक याचिका लगाई। याचिका में कहा गया था कि सीबीआई ने जांच के हिस्से के रूप में उसकी इच्छा के विरुद्ध और उसकी सहमति के बिना उनका वर्जिनिटी कराया था। सिस्टर सेफी ने आरोप लगाया कि CBI ये साबित करना चाहती थी कि वो कॉन्वेंट के दो फादर्स के साथ यौन संबंध बना रही थी। सिस्टर सेफी ने अपनी याचिका में कहा कि उसके वर्जिनिटी का कथित हत्या से कोई संबंध नहीं है और ये सिर्फ उसे अपमानित करने और झूठे मामले को साबित करने के इरादे से किया गया था। सिस्टर सेफी ने अपने सम्मान के अधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाया और न केवल उसके लिए मुआवजे की मांग की, बल्कि यह भी कहा कि मामले की जांच कर रहे सीबीआई अधिकारियों को दंडित किया जाना चाहिए। सीबीआई ने अपना बचाव करते हुए कहा कि उसका (सिस्टर सेफी) वर्जिनिटी टेस्ट इसलिए कराया गया, क्योंकि मामले की जांच के लिए यह जरूरी था।

इसी याचिका पर अब दिल्ली हाई कोर्ट ने सिस्टर सेफी के पक्ष में इस पूरे मामले में 57 पन्नों का फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है कि इस तरह का टेस्ट सेक्सिस्ट है। यौन उत्पीड़न के शिकार के साथ-साथ हिरासत में किसी भी अन्य महिला के लिए परीक्षण अपने आप में बेहद दर्दनाक है और मनोवैज्ञानिक और साथ ही महिला के शारीरिक स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।

 

 

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